Colour blindness ( वर्णांधता ) या कलर विजन क्या है?

Colour blindness एक प्रकार का अनुवांशिक रोग है जो सिर्फ पुरुषों में होता है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति कुछ खास रंगों की पहचान करने में असमर्थ हो जाता है। चुकी यह बीमारी सबसे पहले महान वैज्ञानिक जॉन डाल्टन में देखा गया था इसलिए इसे डाल्टनिज्म भी कहां जाता है। इस बीमारी को सबसे पहले हारनर ( harner ) नामक वैज्ञानिक ने 1876 ईस्वी में वर्णन किए थे।

यह बीमारी महिलाओं द्वारा वाहक का काम करता है इस बीमारी में महिला का X क्रोमोसोम संक्रमित हो जाता है ऐसी महिला से जब कोई स्वस्थ पुरुष मैथून करता है और जब पुरुष का X क्रोमोसोम निकलता है तो वह महिला के असंक्रमित X क्रोमोसोम से ही निषेचित होता है जिससे लड़की का जन्म होता है जो इस रोग से परी रहती है और जब पुरुष का Y क्रोमोसोम निकलता है तो महिला के संक्रमित X क्रोमोसोम से निषेचित होता है जिससे पुत्र का जन्म होता है जिसे वर्णांधता की समस्या होती है।

भारत में कलर ब्लाइंडनेस की समस्या पुरुषों में  8%  और महिलाओं केवल  0.5%  है।

इस बीमारी को 3 phase में बांटा गया है।

1. Protenopia –    इस अवस्था में व्यक्ति लाल रंग की पहचान नहीं कर पाता है।

2.Tritenopia –   इस अवस्था में व्यक्ति ब्लू रंग का सही पहचान नहीं कर पाता है।

3.uteronopia –  इस अवस्था में व्यक्ति हरे रंग का पहचान करने में असमर्थ हो जाता है।

यदि किसी व्यक्ति को कलर ब्लाइंडनेस होता है तो उस व्यक्ति को कलर की परख करने में बहुत कठिनाई होती है लेकिन उसको हम किसी घातक बीमारी का नाम नहीं दे सकते हैं। इस बीमारी से रोगी व्यक्ति के जीवनशैली पर काफी प्रभाव पड़ सकता है। वर्णांधता से पीड़ित लोग रंगों के बीच अंतर स्पष्ट करने में असमर्थ होते हैं लेकिन जो लोग वाकई में कलर ब्लाइंडनेस का शिकार होते हैं उनको सब कुछ काला या सफेद रंग का ही दिखाई देता है।

ज्यादातर मामलों में इस समस्या के लिए अनुवांशिक कारण ही जिम्मेदार होते हैं जो जन्म के साथ ही दिखने लगते हैं अनुवांशिक कारणों के अलावा भी अन्य कई कारण से आंखों में रंगों को पहचानने की समस्या होती है। ग्लूकोमा, डायबिटीज, रेटिनोपैथी जैसी बीमारियों के कारण भी वर्णांधता की समस्या हो सकती है । जब किसी व्यक्ति में यह रोग अनुवांशिक है तो इसका कोई इलाज नहीं है लेकिन अगर आपके कलर ब्लाइंडनेस होने का कारण किसी दवा का गलत प्रभाव या चोट लगना है तो इसका इलाज किया जा सकता है।

जिस व्यक्ति में यह रोग पाया जाता है उसमें निम्नलिखित लक्षण देखने को मिलते हैं वह व्यक्ति केवल कुछ रंगों को ही देख पाता है, पढ़ने में कठिनाई होती है, पलके बार-बार गिरता है, आंखों में दर्द होते रहता है, उसे कई रंगों को देखने में कठिनाई होती है, दृष्टि में दोहरापन हो जाता है और कभी-कभी दृष्टि कमजोर भी हो जाता है।