परमाणु एवं नाभिकीय विखंडन

परमाणु, ऊर्जा वे सूक्ष्म कण होते है, जो अपनी स्वतंत्र अवस्था में विचरण नहीं कर सकते किन्तु रासायनिक क्रिया में भाग ले सकते है| मुख्य रूप से परमाणु के कण तीन कणों से मिलकर बने होते है, जिन्हें इलेक्ट्रान, न्यूट्रान, और प्रोटोन कहा जाता है| परमाणु के केंद्र में नाभिक उपस्थित रहता है, जिसमे न्यूट्रान व् प्रोटान रहते है, एवं इलेक्ट्रान, मध्य में उपस्थित नाभिक के चारों और चक्कर लगाता रहता है|

मूल रूप से परमाणु उदासीन प्रव्रति का होता है, जिसमे प्रोटान एवं इलेक्ट्रान की संख्या समान रहती है एवं आवेश विपरीत होता है|

नाभिकीय विखंडन:

नाभिक के टूटने या किसी भारी नाभिक जिसका द्रव्यमान ७४ से १६२ के मध्य में है, उसके दो भागों में विभक्त होने की प्रक्रिया को नाभिकीय विखंडन कहा जाता है| इस प्रक्रिया के दौरान नाभिक से तीव्र ऊर्जा निक्लती है, जिसे नाभिकीय ऊर्जा कहते है|

सर्वप्रथम अमेरिकी वैज्ञानिक स्ट्रासमैन व् हान के द्वारा नाभिकीय विखडन की प्रक्रिया को प्रयोग के द्वारा प्रदर्शित किया गया था|

श्रंखला अभिक्रिया:

इसके अंतर्गत जब यूरेनियम पर न्यूट्रान का तीव्रता से विस्फोट किया जाता है तो नाभिक के विखंडन होने से अत्याधिक ऊर्जा एवं ३ नये न्यूट्रान का विस्फुटन होता है, फिर आगे से ये न्यूट्रान अन्य नाभिको के विखंडन को प्रोत्साहित करते है, इस प्रकार यह एक श्रंखला बन जाती है, एवं इसे ही श्रंखला अभिक्रिया कहा जाता है|

मुख्य रूप से श्रंखला अभिक्रिया के २ प्रकार है:-

अनियंत्रित श्रंखला अभिक्रिया:

इस प्रक्रिया में नाभिकीय विखंडन के दौरान जब नये न्यूट्रान निकलते है, तो उसपर किसी का नियन्त्रण नहीं होता, जिससे ऊर्जा अत्यंत तीव्र गति से पैदा होती है, जिसके अन्यत भयंकर दुष्परिणाम हो सकते है| परमाणु बम का विस्फोट अनियंत्रित श्रंखला अभिक्रिया का अच्छा उदाहरण है| जिसका सबसे पहला प्रयोग अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा एवं नागासाकी पर अगस्त, १९४५ को दूसरे विश्व युद्ध के दौरान किया गया था, जिसके विनाश के निशान आज भी देखे जा सकते है|

नियंत्रित श्रंखला अभिक्रिया:

इस प्रक्रिया के अंतर्गत नाभिकीय ऊर्जा पर नियन्त्रण होता है, एव यह अभिक्रिया धीमी होती है, जिस से विनाश नहीं हो सकता अतएव नाभिकीय रिएक्टर या परमाणु भट्टी के लिए इस्तेमाल किया जाता है|

नाभिकीय रिएक्टर से जुडी आवश्यक जानकारी:

नाभिकीय रिएक्टर में ईंधन के लिए प्लूटोनियम -२३९ या युरेनियम -२३५ का इस्तेमाल किया जाता है| रिएक्टर में न्यूट्रान की गति को शिथिल करने के लिए मंदक का प्रयोग होता है, जिसके लिए ग्रेफाइट एवं भारी जल का प्रयोग किया जाता है| नाभिकीय विखंडन से निकलने वाले ३ नये न्यूट्रान में से २ का अवशोषण किया जाता है, जिसके लिए नाभिकीय रिएक्टर में एक नियंत्रक रॉड को लगाया जाता है, जिससे सम्पूर्ण प्रक्रिया पर नियन्त्रण प्राप्त हो सके|

नाभिकीय रिएक्टर के लाभ:

विद्युत ऊर्जा प्राप्ति के लिए नाभिकीय रिएक्टर एक उपयोगी तत्व है| इसके साथ ही नाभिकीय रिएक्टर से कई प्रकार के संमस्थानिक पैदा किये जा सकते है, जो चिकित्सा, कृषि, विज्ञानं आदि के लिए उपयोगी एवं लाभकारी साबित हो सकते है|

नाभिकीय सल्यंन:

जब एक से अधिक हल्के नाभिक मिलकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते है, जिनसे मुक्त ऊर्जा निकलती है, तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय सल्यंन कहा जाता है| इसके अंतर्गत सूर्य ऊर्जा एक शक्तिशाली स्त्रोत है, एवं सूर्य एवं तारों से आने वाली ऊर्जा को नाभिकीय सल्यन कहा जा सकता है| नाभिक सल्यंन की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए अत्यधिक ताप एवं उच्च दाब की जरूरत होती है|

उदाहरण के रूप में हम कह सकते है, की हीलियम का नाभिक एक स्थाई नाभिक है, यदि हीलियम के नाभिक में 4 प्रोटान को सम्मिलित कर लिया जाये तो, यह हीलियम नाभिक एक बड़ा नाभिक बन जायेगा और इसी को नाभिक सल्यंन कहा जाता है|