मृदा अपरदन किसे कहते है?

मृदा अपरदन

मृदा अपरदन, मृदा क्षय या मृदा का कटाव से अर्थ मिटटी के कणों का ढीला होकर विभक्त होना होता है| अत्यधिक वर्षा एवं बहते पानी के दबाव के कारण मिटटी एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होती है एवं उसकी उपजता का पृथककरण हो जाता है जिससे मृदा का अत्यधिक क्षय होता है, जो एक चिंताजनक विषय है|

मृदा अपरदन के कारण किसानो को खेती योग्य पर्याप्त उपजाऊ मिटटी उपलब्ध नहीं हो पाती, जिससे अच्छी फसल होने की सम्भावना में कमी आती है| वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार, प्रत्येक वर्ष ५३३४ मिलियन टन से भी अधिक मृदा का अपरदन हो रहा है|

मृदा अपरदन के कारण

मृदा अपरदन के प्रमुख कारणों को जैविक एवं अजैविक कारणों में विभाजित किया गया है| अजैविक कारणों में प्राक्रतिक कारणों को सम्मिलित किया गया है, एवं जैविक कारणों में मानवीय कारणों को शामिल किया गया है| मृदा अपरदन के मुख्य कारण निम्नलिखित है:-

  • वनों की अंधाधुंध कटाई
  • जंगलो में आग लगना
  • गलत तरीके से फसल उगाने की प्रक्रिया दोहराना
  • सिंचाई की गलत विधियों का प्रयोग करना
  • भूमि को बेकार समझकर छोड़ना
  • अत्यधिक वर्षा का कारण मिटटी का कटाव

मृदा अपरदन की प्रक्रिया

मृदा अपरदन के अंतर्गत मिटटी के कण मिटटी के समूह से अलग होकर विभक्त हो जाते है, जब बरसात की बूंदे ऊंचाई से मिटटी के उपर गिरती है, तब कण अलग होकर नदियों, झीलों आदि से जाकर मिल जाते है| मृदा अपरदन की प्रक्रिया के अंतर्गत तीन प्रमुख चरण सम्मिलित किये गए है:-

  • पानी के कारण मृदा का अपरदन
  • मृदा का एक जगह से दूसरी जगह स्थानातंरण
  • मृदा का दूसरी जगह निपेक्षण या जमाव

मृदा अपरदन को रोकने के उपाय

मृदा अपरदन की रोकथाम अति-अनिवार्य है, क्योकि मिटटी के बिना धरती पर किसी प्राणी का जीवन संभव नहीं हो सकता| जैविक एवं अजैविक कारणों का नजदीक से समीक्षण करके विभिन्न उपाय किये जाने चहिये, जैसे कि:-

  • मृदा अपरदन को रोकने हेतु समोच्च जुताई को बढ़ावा दिया जाना चहिये, जिसके अंतर्गत भूमि परिष्करण, खरपतवार पर नियंत्रण, लम्बवत खेती प्रक्रिया, एवं वर्षा के प्रवाह को कम करने के लिए रिज फरो प्रक्रिया को अपनाया जाये, एवं किसानो में इसके प्रति जागरूकता उत्पन्न की जाये|
  • भूमि की उपजता को बढ़ाने हेतु पट्टीदार खेती या (स्ट्रिप क्रोप्पिंग) की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाये एवं मृदा अपरदन अवरोधक फसले उगाई जाये|
  • विभिन्न प्रकार की भूमि परिष्करण की प्रक्रियाओ को अपनाया जाये एवं वायु अवरोधी यंत्र स्थापित किये जाये, जिससे मिटटी का स्थान्तरण कम से कम हो सके|