मकड़ी अपनी जाल में उलझती क्यों नही है

मकड़ी और जाले

अपने कभी न कभी मकड़ी के जाल के बारे में जरूर सुना होगा बहुत से कीड़े मकोड़े इसके जाल में फंस जाते है और वो निकलने की बहुत कोशिश करते है किन्तु निकल नहीं पाते। क्योकि उनका जाल ही कुछ इस तरह से बना होता है की उसमे से निकलना मुश्किल होता है. मकड़ी अपने जाल को इस ढंग से बुनती है की इसमें से कोई बाहर न निकल सके. लेकिन क्या अपने कभी सोचा है की मकड़ी अपने जाल में कभी क्यों नहीं फस्ती।

मकड़ी अपने जाल में कभी नहीं फस्ती क्योकि मकड़ी का पैर तैलीय होता है इसलिए वह जाल में नहीं फंसती और आसानी से जाल में इधर उधर घूम पाती है. मकड़ी अपना जाल चिपचिपा बुनती है जिसके कारण वह उसमे चिपक नहीं पाती। जहाँ अपने जाल में मकड़ी रहती है वो हिस्सा उसने चिपचिपे पदार्थ से बनाया होता है. इसलिए वो अपने जाल में खुद कभी नहीं फस्ती। मकड़ी लगभग पिछले 4.5 करोड़ वर्षों से इस धरती पर रह रही है. और अपना जाल बुन रही है. मकड़ी के पिछले भाग में स्पिनरेट नाम का अंग होता है.

इसकी सहायता से ही मकड़ी इस चिपचिपे द्रव को अपने पेट से बाहर निकालती है। जिसके कारण वह जाल में आसानी से घूम पाती है. मकड़ी धागे स्पोक्स नाम के चिपचिपे पदार्थ से बने होते हैं। स्पोक्स के कारण ही जाल में दूसरे कीड़े फंसते है. मकड़ी अपने जाल में खुद न फसे इसके लिए वह रोजाना अपने अच्छी तरह साफ़ करते है. पृथ्वी पर अगर मकड़ी की बात करे तो वह सातवे नंबर पर आती है. इनकी कुल आठ पैर होते है. इनके शरीर पर ज्यादातर पंख होते है. इनकी आँखों पर रेटिना नहीं होता। मकड़ीया रेशम भी बनती है. शायद आपको ये जानकर हैरानी हो की ये चींटियों से गन्दी होती है क्योकि इनमे फोरमिक एसिड नामक तत्व पाया जाता है.