प्लाज्मा किसे कहते हैं

प्लाज़्मा-  ठोस, तरल व गैस के बहुत बाद कई वर्षों के अध्ययन के फलस्वरूप प्लाज़्मा को द्रव्य की एक अवस्था का रूप दिया गया। सर विलियम क्रुक्स ने सन्1879 में एक पदार्थ को खोजा, जिसे उन्होंने  “चमकीले पदार्थ” का नाम दिया था। सर इर्विन्ग लेंग्मयूडर द्वारा इस पदार्थ को “प्लाज़्मा” नाम रखा गया व इसी नाम से आजतक इसे जाना जाता है। यह द्रव्य की चतुर्थ अवस्था है।
गैस की भाँति प्लाज़्मा के अणु दूर-दूर उपस्थित रहते है, परन्तु यह विद्युत का चालक होता है। इसकी आकृति व आयतन अनिश्चित होते हैं। यह भी एक तरह की गैस के रूप में ही होती है।

जैसा की विदित है कि द्रव्य का निर्माण बहुत सारे छोटे कणों के समूह, जिन्हें अणु कहते हैं तथा अणुओं का निर्माण परमाणुओं से; जिसके नाभिकीय केन्द्र में इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन व न्यूट्रॉन पाये जाते है। जब इनमें ऊर्जा पहुंचती है तो ये गतिशील होकर आपस में क्रिया करते हैं। गतिशीलता से कणों की स्थिति में परिवर्तन आने से द्रव्य की अवस्था में भी परिवर्तन आता है।

द्रव्य की सभी अवस्थाओं को समझने का व स्मरण रखने का सबसे सरल उदाहरण है- बर्फ (ice)।
द्रव्य की प्राथमिक ठोस अवस्था से आरम्भ करते हुए यह समझा जा सकता है कि बर्फ ठोस अवस्था में होती है। ठोस अवस्था में बर्फ का हिमांक बिन्दु शून्य डिग्री पर स्थित रहता है।
जब इसे गर्म करते हैं तो इसमें ऊर्जा का प्रवाह होता है, जिससे इसका हिमांक बिन्दु शून्य से ऊपर बढ़ने लगता है। यह अब हिमांक न होकर गलनाँक बिन्दु पर होती है तथा बर्फ धीरे-धीरे पिघलते हुए पानी का रूप ले लेती है। यह अवस्था द्वितीय द्रव (तरल) अवस्था कहलाती है।

जब पानी को और गर्म करके अधिक ऊर्जा दी जाती है तो इसमें उबाल आने लगते हैं, यह इसका क्वथनांक बिन्दु कहलाता है तथा पानी उबलते हुए वाष्प के रूप में धीरे-धीरे कम होने लगता है। यह तृतीय गैस अवस्था कहलाती है।

जब इस गैस में और अधिक ऊर्जा वाहित की जाती है तो परमाणुओं में इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन व न्यूट्रॉन में ऊर्जा का उत्सर्जन होने से इसके कणों में अधिक आवेश आने से आयनीकरण होना आरम्भ होता है। फलस्वरूप आयनीकृत आवेशित कणों वाली गैस के रूप में जो अवस्था पाई जाती है, यही चतुर्थ प्लाज़्मा अवस्था है