पारिस्थितकी एवं पारितंत्र:

पारिस्थितिकी या इकोलॉजी से अर्थ हमारे चारों तरफ उपस्थित जीवों, प्राणियों, पौधे, एवं सूक्ष्म जीवों से है, जो पर्यावरण एवं वातावरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है| ये सभी जीव-जन्तु एवं पादप मिलकर जैविक इकाई के रूप में कार्य करते है एवं खाद्य श्रंखला का निर्माण करते है|

पारिस्थितिकी के अंतर्गत आने वाले अधिकांश जीव भोजन हेतु दूसरे जीवों पर आश्रित होते है, ये आपस में निवास स्थान बांटते है एवं अन्य क्रिया-कलापों हेतु दूसरे जीवों की सहायता लेते है|

पारिस्थितिकी या पारिस्थितिकी तन्त्र जीव विज्ञान के लिए अध्ययन का एक महत्वपूर्ण विषय है, जिसके अंतर्गत जीव जगत के आपसी सम्बन्धों एवं व्यवहार का गहनतापूर्वक अध्ययन किया जाता है|

इकोलॉजी जर्मन भाषा का शब्द है, जिसका सबसे पहले प्रयोग अर्नेस्ट हैकल ने अपनी बुक में किया, जो की स्वयं एक जर्मन वैज्ञानिक थे| इसमें उन्होंने जीवों के अध्ययन के साथ मानव पारिस्थितिकी की अवधारणा का भी प्रतिपादन किया, जिसमे मानव के पर्यावरण एवं इसमें रहने वाले जीवो एवं पादपो के साथ पारस्परिक सम्बन्ध को दर्शाया गया है|

मानव पारिस्थितिकी के अंतर्गत इस बात के तथ्य भी सामने आये कि मानव अन्य जीवों से कही अधिक पारिस्थितिकी तन्त्र को नुकसान पहुचाने की क्षमता रखता है, और उसने जाने-अनजाने ऐसा किया भी है| किन्तु कई बार उसने पारिस्थितिकी को बचाने हेतू उचित प्रयास भी किये है|

पारिस्थितिकी का अध्ययन केवल स्थल तक सीमित न रहकर सागर की गहराई तक भी जाता है, जहाँ जलीय जीवों का अध्ययन किया जाता है, खोजो के दौरान कई ऐसे जीवों का पता लगा जो बहुत कम ऑक्सीजन एवं समुंद्र की काफी गहराई में भी जिन्दा रहते है, किन्तु यह क्षेत्र अभी इतना विस्तृत नहीं हो पाया है|

पारिस्थितिकी तन्त्र या पारितंत्र:

पारिस्थितिकी तन्त्र या पारितंत्र एक ही शब्द के दो रूप है एवं दोनों का समान अर्थ है अर्थात पर्यावरण में विद्यमान सभी जीव-जंतुओं, पादपो, जलीय जीवों आदि का सामूहिक योगदान एवं उनके आपसी संबंधो को पारिस्थितिकी तन्त्र कहा जाता है|

इसके अंतर्गत पर्यावरण में उपस्थित प्रत्येक प्राणी वातावरण के अनुकूल बनने के लिए एक खास प्रणाली या तन्त्र का निर्माण करता है, जिससे वो अपने अस्तित्व को बनाये रख सके, और यह तन्त्र सदियों तक चलता रहता है|

इसी तन्त्र में जीव खाद्य जाल या खाद्य श्रृंखला का निर्माण करते है, जिसमे बड़े मांसाहारी जीव द्वारा छोटे जीवों को मारकर खाना एवं अन्य जीवों का अपने भरण-पोषण हेतू दूसरे साधनों या दूसरे जीवों पर निर्भर रहना आदि सम्मिलित है|

पारिस्थितिकी तन्त्र के घटक:

पारिस्थितिकी तन्त्र के प्रमुख रूप से दो घटक होते है:-

जैविक घटक:

जैविक घटकों में मनुष्य, सूक्ष्म जीव, वनस्पति समुदाय एवं सम्पूर्ण जन्तु समुदाय सम्मिलित है|

अजैविक घटक:

अजैविक घटकों में प्रकाश, ताप, आर्द्रता, मृदा, हवा, स्थलाकृति आदि सम्मिलित है|

पारिस्थितिकी तन्त्र की कुछ विशेषताएं:

# पारिस्थितिकी तन्त्र की सरंचना के लिए तीन महत्वपूर्ण संघटक जिम्मेवार होते है, प्रथम है, ऊर्जा संघटक, दूसरा है, बायोम एवं तीसरे स्थान पर है, अजैविक संघटक|

# पारिस्थितिकी तन्त्र सर्वदा गतिशील एवं कार्यशील इकाई है, जिसमे सभी जीवो के उनके वातावरण के साथ आपसी समन्वय एवं सामंजस्य का योगदान रहता है|

# पारिस्थितिकी तन्त्र धरातल पर एक विशेष क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता हुआ नजर आता है|

#  पारिस्थितिकी तन्त्र के तीनो महत्वपूर्ण घटकों के मध्य विभिन्न क्रियाए एवं प्रतिक्रियाए सम्पन्न होती है, और ऐसा ही इसमें मौजूद जीवों के मध्य घटता है|

# पारिस्थितिकी तन्त्र को साधारण भाषा में खुला तन्त्र भी कहा जाता है, क्योकि यहाँ जीवों एवं पदार्थो का आवागमन लगा रहता है|

# पारिस्थितिकी तन्त्र स्थिर स्थिति में रहता हैं जब तक इसके आपसी कारको में अव्यवस्था प्रकट नहीं होती|

# पारिस्थितिकी तन्त्र एक व्यवस्थित एवं सुसंघठित सरंचना है, यदि इसके किसी एक घटक में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाए तो दूसरा घटक उसकी भरपाई हेतू तत्पर रहता है, किन्तु यदि मानवीय क्रियाकलापों द्वारा अधिक नुकसान पहुचाया जाये तो भरपाई सम्भव नहीं होती जिससे पर्यावरण प्रदुषण जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती है|

पारिस्थितिकी तन्त्र के प्रकार:

आवासीय क्षेत्र के आधार पर पारिस्थितिकी तन्त्र का वर्गीकरण:

इस वर्गीकरण के अंतर्गत जीवो के निवास स्थान एवं वहा की विशेषताओं एवं समुदायों का निर्धारण किया जाता है| भौतिक क्षेत्रो में काफी विभिन्नताएं पाई जाती है, जो जैविक समुदाय को भी प्रभावित करती है| इसलिए इसे मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है:-

पार्थिव या स्थलीय पारिस्थितिकी तन्त्र:

पार्थिव पारिस्थितिकी तन्त्र या स्थलीय पारिस्थितिकी तन्त्र में कई प्रकार की विभिन्नताए पाई जाती है, अत: इसके भी कई उपभाग किये गये है, जैसे- पर्वत पारिस्थितिकी तन्त्र, रेगिस्तानी पारिस्थितिकी तन्त्र, निम्न स्थलीय पारिस्थितिकी तन्त्र, आदि|

जलीय पारिस्थितिकी तन्त्र:

जलीय पारिस्थितिकी तन्त्र को भी कई उपभागों में विभाजित किया गया है, जिससे उनके अध्ययन में आसानी हो सके| इसके अंतर्गत सर्वप्रथम ताजे जल का पारिस्थितिकी तन्त्र आता है, जिसमे नदी, झील, जलाशय, दलदल आदि का पारिस्थितिकी तन्त्र शामिल किया गया है| दूसरा जलीय पारिस्थितिकी तन्त्र सागरीय पारिस्थितिकी तन्त्र है, जिसमे समुंद्र में रहने वाले सभी प्राणियों का अध्ययन सम्मिलित किया गया है|

क्षेत्रीय माप के आधार पर पारिस्थितिकी तन्त्र का वर्गीकरण:

यदि सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तन्त्र का व्यापक रूप से आकलन किया जाए तो यह अति-व्यापक एवं वृहत क्षेत्र माना जायेगा| इसलिए क्षेत्रीय माप के द्वारा पारिस्थितिकी तन्त्र को दो भागों में विभक्त किया जाता है, जिसमे प्रथम है- महाद्वीपीय पारिस्थितिकी एवंम दूसरा है महासागरीय पारिस्थितिकी| अध्ययन की सुविधा हेतु एवं आवश्यकता के अनुसार क्षेत्रीय माप को और छोटा किया जा सकता है, जैसे- पर्वतीय पारिस्थितिकी, जलीय पारिस्थितिकी, मैदान पारिस्थितिकी, जीव पारिस्थितिकी आदि|

उपयोग के आधार पर पारिस्थितिकी तन्त्र का वर्गीकरण:

पारिस्थितिकी तन्त्र को अपने उपयोग के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है| जैसे ई.पी. ओडम ने, कृषि क्षेत्र में विभिन्न विधियों के आधार पर पारिस्थितिकी तन्त्र का दो भागों में विभाजन किया| जिनके नाम कृषित एवं अकृषित पारिस्थितिकी तन्त्र दिए|

कृषित के अंतर्गत फसलो के विभिन्न प्रकारों को अलग-अलग भागों में बांटा गया| जैसे गेहू पारिस्थितिकी तन्त्र, चारा पारिस्थितिकी तन्त्र| अकृषित पारिस्थितिकी तन्त्र में दलदल, क्षेत्र, घास एवं वन पारिस्थितिकी एवं बंजर जमीन पारिस्थितिकी तन्त्र को सम्मिलित किया गया है|

पारिस्थितिकी पिरामिड:

पारिस्थितिकी पिरामिड से अर्थ है, पारिस्थितिकी के अंतर्गत आने वाले समस्त जीवधारियो एवं पादपो के आपसी संबंधों एवं पौष्टिकता के आधार पर उनका अध्ययन करना| इसी प्रक्रिया को पारिस्थितिकी शंकु या पारिस्थितिकी पिरामिड भी कहा जाता है, इसका उद्देश्य जीव-विज्ञान के लिए पारिस्थितिकी तन्त्र के गहन खोजो को सरल बनाना एवं अधिक से अधिक जानकारी इकठा करना है|

इस प्रक्रिया में प्राणियों के पारिस्थितिकी सम्बन्धित आकड़ो को संख्या पिरामिड, बायोमास पिरामिड एवं ऊर्जा के पिरामिड के रूप में व्यक्त किया जाता है, जिससे यह ज्ञात किया जाता है, कि प्राणियों की जनसँख्या में कितनी बढ़ोतरी या घटत हुई है, इसके साथ ही ऊर्जा का कितनी मात्रा में व्यय हुआ है|

पारिस्थितिकी पिरामिड के प्रमुख प्रकार:-

पारिस्थितिकी पिरामिड को वैज्ञानिको ने मुख्य रूप से तीन भागों में विभक्त किया है, जो इस प्रकार है:-

जीव गणना या संख्या पिरामिड

पारिस्थितिकी या बायोमास पिरामिड

पारिस्थितिकी ऊर्जा कोण पिरामिड

पारिस्थितिकी तन्त्र के निष्कर्ष स्वरूप यह कहा जा सकता है, कि पारिस्थितिकी एवं पारितंत्र का हमारे जीवन एवं पर्यावरण में महत्वपूर्ण योगदान रहता है| इन जीवों का अध्ययन करना एवं समस्त सूचनाओं को एकत्र करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना की ये जीव-जन्तु एवं पौधे|

प्रकृति के प्रत्येक कार्य में एक लयबद्धता है, जिसमे सभी क्रियाकलाप निर्धारित होते है| सभी प्राणधारी जीव अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए अथक प्रयास करते है, किन्तु जीवित रहने हेतू दूसरे जीवों को मरना भी इसी पारिस्थितिकी तन्त्र का हिस्सा है| अत: मानव को अपने हानिकारक क्रियाओ से इसे हानि नहीं पहुचानी चाहिए|