असहयोग आन्दोलन Non-Cooperation Movement

भारत की स्वतन्त्रता में महात्मा गाँधी का योगदान काफी अच्छा रहा जिसने अंग्रेजो से भारत को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है|

गाँधी जी ने भारत को वापस वही सम्मान का दर्जा दिलवाने के लिए कई आन्दोलन चलाये जिसमे से असहयोग आन्दोलन उनका पहला जन-आन्दोलन माना जाता है|

इस आन्दोलन में हर वर्ग ने बढ़-चड़कर हिस्सा लिया एवं ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष प्रकट किया|

क्या कारण थे असहयोग आन्दोलन के?

प्रथम विश्व के युद्ध के बाद भारत की स्थिति बेहद खराब थी एवं तभी महात्मा गाँधी ने राजनीति में प्रवेश किया एवं कांग्रेस की कमान अपने हाथों में ली| प्रथम विश्व युद्ध के समय गाँधी जी ने अंग्रेजो का साथ दिया यह सोचकर के शायद वे भारत के साथ मित्रता की नीति अपनाये एवं गाँधी जी के समर्थन से खुश होकर उन्होंने उन्हें ‘केसर-ए-हिन्द’ की उपाधि भी दी|  

गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए कई अहिंसा के प्रयोग किये थे एवं भारत में भी उन्होंने अनशन के द्वारा कुछ जगह सफलता हासिल भी की| किन्तु फिर भी कुछ कारण ऐसे थे जिन्होंने गाँधी जी को असहयोग आन्दोलन के लिए प्रेरित किया जो इस प्रकार है:-

ब्रिटिश सरकार के प्रति रोष:

असहयोग आन्दोलन को शुरू करने का सबसे प्रमुख कारण ब्रिटिश सरकार की अत्याचारी नीतिया थी जिसमे उनका स्वार्थ निहित था एवं वे भारतीयों को नौकर समझती थी| प्रथम विश्व युद्ध ने भारत की आर्थिक व्यवस्था को डांवाडोल कर दिया था एवं आर्थिक संकट छाया हुआ था|

इसी समय ब्रिटिश सरकार ने 1919 ई. में रोलेट एक्ट कानून पारित किया जो भारत के लिए काला कानून बनकर आया | इस एक्ट के खिलाफ सम्पूर्ण भारत में विरोध एवं हडताल चल रही थी और इन्ही कारणों ने गाँधी जी को एक बड़े स्तर पर आन्दोलन के लिए उत्सुक किया|

जलियावाला हत्याकांड:

1919 ई. में अमृतसर में जलियावाला बाग में हजारों लोग अंग्रेजी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे की तभी वह जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के अंधाधुंध फायरिंग का आदेश दिया जिसमे हजारों बच्चे, बुजुर्ग, महिलाये, एवं जवान लोग मारे गये एवं 2000 के पास लोग घायल हो गये|

इस हिंसक काण्ड ने पुरे भारत को हिलाकर रख दिया एवं अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध गुस्सा और बढ़ता गया| गाँधी जी भी इस कांड की खबर सुनकर काफी दुखी हुए एवं तभी उन्होंने असहयोग आन्दोलन की घोषणा की|

क्या था असहयोग आन्दोलन:

1920 ई. में गाँधी जी ने बहुमत के साथ ‘कलकत्ता अधिवेशन’ में असहयोग प्रस्ताव पारित करवा लिया जिसे सरकार ने मंजूरी दी एवं इसी के साथ असहयोग आन्दोलन पुरे भारत में आग के जैसे फ़ैल गया|

इस आन्दोलन के अंतर्गत गाँधी जी ने सभी भारत की जनता से कहा की वे अंग्रेजी शासन द्वारा दिए जाने वाले कोई ख़िताब या इनाम स्वीकार नहीं करेंगे एवं गाँधी जी ने खुद भी केसर-ए-हिन्द की उपाधि लौटा दी|

इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार द्वारा दिए गये पदों, नौकरियों, स्कूल कॉलेज आदि सबका बहिष्कार किया गया| कोई भी भारतीय विदेशी सामान का प्रयोग नहीं करेगा| स्वदेशी अपनाने की मांग की जाने लगी एवं अदालतों का भी बहिष्कार किया गया|

कैसे हुआ असहयोग आन्दोलन का अंत एवं क्या थे परिणाम:

इसी आन्दोलन के चलते हुए क्रांतिकारियों ने चौरी-चोरा नामक स्थान पर हिंसात्मक प्रवृति अपनाते हुए वहाँ के थानेदार एवं 21 सैनिको को जिन्दा जलाकर मार दिया एवं अन्य जगहों से भी हिंसा की खबरे आने लगी|

चूँकि गाँधी जी अहिंसावादी थे उन्हें इस बात से काफी धक्का लगा एवं उन्होंने आन्दोलन को रोकने की अपील की जिसे काफी लोग नाराज हुए एवं 1922 ई. को यह आन्दोलन बंद कर दिया गया|

आन्दोलन के दौरान अनेक लोगों ने अपनी जान गंवाई एवं कईयों को जेल जाना पड़ा हालंकि इसके बहुत व्यापक परिणाम नहीं हुए किन्तु फिर भी ब्रिटिश सरकार के मुह पर एक तमाचा जरुर पड़ा|