शीशे में अपना प्रतिबिम्ब कैसे बनता है?

क्या आपके जिज्ञासु दिमाग में कभी यह सवाल उत्पन्न हुआ कि शीशे में हमारी छवि किस तरह उभर कर हमारी आंखों के सामने आ जाती है| इस सवाल का जवाब काफी उत्सुकता भरा हैं और साथ ही साथ प्रकाश की किरणों के कुछ विशिष्ट नियमों की पालना करता है| शीशे में देखने पर प्रतिबिंब का बन जाना एक वैज्ञानिक और शीशे के भौतिक गुण जिसमें उसका समतल होना एक अहम कारक है|

वास्तव में, एक चिकनी सतह के साथ जो कुछ भी प्रकाश टकराता हैं और हिट करता है सतह केवल बहुत ही कम रोशनी को अवशोषित या बिखेर पाती हैं इसी प्रक्रिया में हूबहू प्रतिबिम्ब का निर्माण होता हैं | मुख्य कारक एक चिकनी सतह है, क्योंकि किसी न किसी सतह को प्रतिबिंबित करने के बजाय प्रकाश बिखर जाता है |

समतल दर्पण के सामने रखी कोई भी वस्तु के प्रत्येक बिन्दु से निकलने वाली किरणें समतल दर्पण से टकराकर परावर्तित हो जाती है | ये परावर्तित किरणें अपसारी होती है अर्थात आँख की ओर किसी भी बिन्दु पर नहीं मिलती है जबकि दर्पण के पीछे की ओर बढ़ाने पर किसी बिन्दु पर मिल जाती है, अतः ये परावर्तित किरणें जब आँख में प्रवेश करती है तो दर्पण के दूसरी ओर स्थित बिन्दु से आती हुई प्रतीत होती है और उसी बिन्दु पर हमें वस्तु का प्रतिबिम्ब बनता हुआ प्रतीत होता है |

आज के समय में बनने वाले शीशे आमतौर पर स्पष्ट ग्लास से बने होते हैं जिन्हें धातु की पतली फिल्म, जैसे चांदी या एल्यूमीनियम के साथ एक तरफ लेपित किया जाता है | अधिकांश बाथरूम में दर्पण इस प्रकार के ही होते हैं, जिन्हें समतल दर्पण के रूप में जाना जाता है | वे फ्लैट होते हैं और उनके सामने वस्तुओं को सटीक रूप से प्रतिबिंबित करते हैं, वही सापेक्ष आकार और प्रतिबिंबित वस्तुओं की स्थिति को बनाए रखते हैं |