ब्रह्माण्ड में मौजूद कणों का इतिहास

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ब्रह्माण्ड किन चीजों से बना है

मानव के धरती पर कदम रखने के बाद से मानव की मुख्य सोच यही रही है कि सारा ब्रह्माण्ड किससे निर्मित हुआ है। आरम्भ में यह धारणा थी कि ब्रह्माण्ड में स्थित सभी सजीव व निर्जीव पंच तत्वों से आकाश, पृथ्वी, वायु, अग्नि व जल से मिलकर बने हैं। परन्तु बाद में रसायन शास्त्रियों ने तत्वों से अस्तित्व को सिद्ध किया और आज इन तत्वों की संख्या 110 तक पहुंच चुकी है। लगभग 600 ईसा पूर्व एक भारतीय मनीषी एवं दार्शनिक कणाद ने बताया कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अति सूक्ष्म कणों से मिलकर बना है।

सन् 1808 में प्रसिद्ध रसायन शास्त्री “जॉन डॉल्टन” ने वैज्ञानिक ढंग से परमाणु सम्बन्धी सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उन्होंने रासायनिक क्रियाओं के आधार पर बताया कि तत्व एक विशेष अनुपात में क्रिया करते हैं तथा इसके आधार पर डॉल्टन ने बताया कि सभी तत्व परमाणु कहलाने वाले सूक्ष्म कणों से मिलकर बने हैं, जिन्हें विभाजित करना असम्भव है। 

सन् 1897 में वैज्ञानिक “जे.जे.थॉमसन“ने निर्वात नली में कैथोड किरणों का उत्पादन करके इनके आवेश एवं द्रव्यमान का अनुपात का मान ज्ञात किया। उन्होंने देखा कि कैथोड किरणें ऋणावेषित हैं, जिन्हें इलेक्ट्रॉन का नाम दिया। अतः थॉमसन के प्रयोग से परमाणु में ऋणावेश की उपस्थिति का पता लगा। 

“मिलिकन” ने अपने प्रयोग से इलेक्ट्रॉन पर आवेश ज्ञात किया। 

सन् 1911 में “लॉर्ड रदरफोर्ड” का स्वर्ण परमाणु पर अल्फ़ा कण प्रकीर्णन के प्रयोग में यह पता लगा कि परमाणु में धनावेश भी उपस्थित है। यह परमाणु के मध्य भाग में स्थित है तथा परमाणु से लाख गुणा छोटा है तथा उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाता है।नाभिक में स्थित इन धनावेश कण को प्रोटॉन नाम दिया गया। 

सन् 1932 में विज्ञान विशेषज्ञ “जेम्स चैडविक“ने एक ओर नाभिकीय कण की खोज की, जिसका द्रव्यमान प्रोटॉन के बराबर था तथा इनपर कोई आवेश नही पाया जाता। इनका नाम न्यूट्रॉन रखा गया। लम्बे समय तक न्यूट्रॉन, प्रोटॉन व इलेक्ट्रॉन को नाभिक के मूल कण माना गया।

समय व्यतीत होने के साथ भौतिकविदों ने अन्य नाभिकीय कणों की खोज की, जिनमें हैं- न्यूट्रिन,फोटॉन, म्यूऑन, मेसॉन, एंटी-न्यूट्रॉनआदि। 

सन् 1932 में “सी.डी. एंडरसन” ने इलेक्ट्रॉन के एन्टी कण पोजिट्रॉन की खोज की। अब यह बात भी सिद्ध हो चुकी है कि सभी कणों के एंटी कणों का अस्तित्व भी है।

इतने सारे कणों की खोज होने के कारण इनको अलग-अलग समूहों में विभाजित किया। शुरू में सभी कणों को मोटे तौर पर दो समूहों में बांटा। एक समूह को “लेप्टोन” तथा दूसरे समूह को “हैड्रॉन” नाम दिया गया।

हल्के कण जैसे  इलेक्ट्रॉन, म्यूऑन व न्यूट्रिन को लेप्टोन परिवार में रखा गया और भारी कण जैसे प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, व मेसॉन को हैड्रॉन परिवार में शामिल किया गया। सामूहिक रूप से इन्हें क्रमशः बेरीयोन व मेसॉन कहा गया।

बेरीयोन को आगे दो भागों में बांटा, जिनका नाम”न्यूमलियोन” व “हाइप्रोन्स” रखा। न्यूमलियोन में प्रोटॉन, न्यूट्रॉन व इनके एंटी कणों को रखा गया, जबकि हाइप्रोन्स में लैम्डा कण, सिग्मा कण व काई कण को रखा गया।

सन् 1964 में गैलमैन, ज़ीमान व जॉर्ज ज़्वेईग ने क्वार्क मॉडल को प्रस्तुत किया। इस मॉडल के अनुसार सभी हैड्रॉन का निर्माण क्वार्क कणों से मिलकर हुआ होता है। इन कणों पर अन्य मूलकणों की तरह पूर्ण आवेश नही होता है। इन पर इलेक्ट्रॉन व प्रोटॉन का आवेश +2/3 या -1/3 गुणा होता है। गैलमैन को इस क्वार्क मॉडल के लिए 1969 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला।

गैलमैन के मॉडल में तीन क्वार्क ही प्रस्तावित थे। इनको अप, डाउन व स्ट्रेन्ज नाम दिया गया। बेरियोन नामक कणों की रचना तीन क्वार्कों से होती है तथा मेसॉन नामक कण की रचना एक क्वार्क व एक एंटी क्वार्क से होती है। प्रोटॉन में दो अप व एक डाउन क्वार्क पाये जाते है। न्यूट्रॉन में एक अप व दो डाउन क्वार्क पाये जाते हैं। अप क्वार्क पर +2/3e का आवेश होता है तथा डाउन क्वार्क पर -1/3e का आवेश होता है।

बाद में इसी क्रम में चौथे व पाँचवे क्वार्क की खोज हुई, जिनका नाम चार्म क्वार्क व बॉटम क्वार्क रखा गया। 

इसी क्रम में क्वार्क परिवार के छठे सदस्य की खोज अमेरिका स्मिथ फर्मी नेशनल एक्सीलेटर लेबोरेट्री में कार्यरत वैज्ञानिकों के दाल ने 2 मॉर्च 1995 में की, जिसका नाम टॉप क्वार्क” रखा गया।

क्वार्कों के अंतिम व अविभाज्य कण से अभी तक कई वैज्ञानिक पूर्ण रूप से सन्तुष्ट नही है। अब इन क्वार्कों से आगे चलकर प्रोटोक्वार्कों के अस्तित्व के बारे में परिकल्पना करने में लगे हैं। प्रोटोक्वार्क ही  आगे की खोज का आधारभूत प्रश्न है|