दिन और रात क्यों होते है। Why day and night occurs in Hindi

सूर्य की गति को हम सभी देखते हैं, और यही गति दिन और रात का कारण बनती है। दरअसल गति सूर्य की नहीं बल्कि पृथ्वी की है जो सूर्य के चक्कर के साथ अपनी खुद की धुरी पर भी घूमती रहती है।

अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करने की लिए धरती को 24 घंटे का समय लगता है।  और धरती के गोल आकर के कारण इसका केवल कोई एक ही अर्धभाग सूर्य की ओर रह सकता है। सबसे साधारण शब्दों मे जिस हिस्से में सूर्य की रौशनी पड़ रही होती है वहां दिन होता है, और दूसरी ओर रात।  और क्यूंकि सूर्य स्थितिज है, और धरती चलित है, किसी देश की पृथ्वी पर स्थिति के आधार पर ही उस देश में सूर्यास्त और सूर्योदय के समय और दिन और रात की अवधि का भी निर्णय होता है।

नॉर्वे इसी तरह एक ऐसा देश है जहां साल में लगभग छह महीने तक सूर्यास्त नहीं होता। पर यह वैज्ञानिक सिद्धांत समाज के द्वारा इतना आसानी से अपनाया नहीं गया।

कई शताब्दियों से, सभी प्राकृतिक विषय वस्तुओं की तरह सूर्य को भी ईष्वर के द्वारा प्रदत्त वरदान अथवा किसी देवता के रथ के पहिये इत्यादि के रूप में जाना जाता था। कमाल की बात तो ये है की इन्ही कहानियों के आधार पर आदि  सभ्यताओं ने स्थापत्य, और खगोल विज्ञान की अनेक महान उपलब्धियां हासिल कीं। धरती के घूर्णन से ही सूर्य की गति का एहसास होता है।

और सूर्य के प्रकाश की स्थिति को समझने के लिए किसी अंदर कमरे में, खिड़की के सामने पड़ी हुई किसी गेंद के बारे में सोचना चाहिए।  जिस तरह खिड़की से आने वाली रौशनी गेंद के केवल एक ही भाग पर पड़ती है, वैसे ही सूर्य की रौशनी एक बार में धरती के एक ही भाग पर चमक सकती है।

लाखों वर्षों के क्रमिक विकास और पृथ्वी की संरचना पर हमारी निर्भरता ने हमे सूर्य के साथ तालमेल में जीना सिखाया है। और इसी तरह हमारी शारीरिक प्रवृत्तियां भी सूर्य के इन्ही सिद्धांतों पर आधारित हैं।

रात आते ही नींद आजाना और सूर्य की रौशनी में ऊर्जा का अनुभव कर, अपने सभी काम कर पाना इसी समन्वय के उदाहरण हैं  लाखों वर्षों के क्रमिक विकास और पृथ्वी की संरचना पर हमारी निर्भरता ने हमे सूर्य के साथ तालमेल में जीना सिखाया है। और इसी तरह हमारी शारीरिक प्रवृत्तियां भी सूर्य के इन्ही सिद्धांतों पर आधारित हैं। रात आते ही नींद आजाना और सूर्य की रौशनी में ऊर्जा का अनुभव कर, अपने सभी काम कर पाना इसी समन्वय के उदाहरण हैं।