कोशिका विभाजन (Cell Division) को समझाएं

कोशिका विभाजन एक प्रमुख जैविक प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत कोशिका एक से अधिक भागों में विभक्त होकर अन्य कोशिकाओं का निर्माण करती है| कोशिका विभाजन जीव के विकास का एक महत्वपूर्ण चरण है एवं यह कोशिका चक्र के अंतर्गत आने वाला भाग है| संजीव प्राणी के लिए कोशिका विभाजन एवं कोशिका चक्र आवश्यक प्रक्रिया है, जिससे नई कोशिकाओं का निर्माण होता है एव मृत कोशिकाओं को हटा दिया जाता है|

बिरचाऊ नामक वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम १९५५ ई. में कोशिका विभाजन को देखा था| मूल रूप से कोशिका से अलग होने वाली कोशिका को जनक कोशिका या मातृ कोशिका एवं इससे निकलने वाली कोशिकाओं को पुत्री कोशिका या सन्तति कोशिका कहा जाता है| जीवों में घाव एवं चोट आदि के जख्म भरने की प्रक्रिया कोशिका विभाजन के अंतर्गत सम्भव हो पाती है| प्राणियों के क्रमिक विकास एवं सन्तान उत्पत्ति के लिए भी कोशिका चक्र एवं कोशिका विभाजन अनिवार्य है|

मुख्य रूप से कोशिका विभाजन के तीन चरण निश्चित किये गये है, जिनका विवरण इस प्रकार है:-

समसुत्रण या समसूत्री या साधारण कोशिका विभाजन:

समसूत्री विभाजन निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, एवं ये कोशिका के विभाजन का प्रथम चरण है, इस प्रक्रिया को कायिक विभाजन भी कहा जाता है| इस प्रक्रिया में कोशिका विभाजन की प्रक्रिया से होकर गुजरती है किन्तु गुणसूत्रों की स्थिति पूर्ववत बनी रहती है| सर्वप्रथम १८७९ ई. में फ्लेमिंग ने जन्तु कोशिका में समसूत्री विभाजन का पता लगाया था और इसे समसूत्री कोशिका विभाजन का नाम दिया| विभाजन के अंत में जनक कोशिका सन्तति कोशिका में परिवर्तित हो जाती है| इस प्रक्रिया में दो समान कायिक कोशिकाओं में कोशिका का विभाजन एवं निर्माण होता है, जिसके मुख्य रूप से 4 चरण निर्धारित किये गये है, जो इस प्रकार है:-

पूर्वावस्था:

यह प्रक्रिया कुछ पादप कोशिकाओं एवं सभी जन्तु कोशिकाओं में पाई जाती है| इस प्रक्रिया में केन्द्रक सूत्र मोटे ब सूक्ष्म हो जाते है जो इससे पहले पतले और लम्बे थे| जीवो की कोशिकाओं के सेंट्रोसोम के मध्य में ताराकेंद्र पाया जाता है जिसका इस प्रक्रिया के दौरान विभाजन हो जाता है एवं सेंट्रोसोम भी दो भागों में बंट जाता है एवं ये एक दूसरे से काफी दुरी पर जाकर स्थापित हो जाते है| केन्द्रक का आवरण पूर्णत: नष्ट हो जाता है एवं सेंट्रोसोम के बाह्य तरह कोशिका द्रव्य की पतली परत बन जाती है, जिसे ताराकिरण कहा जाता है|

मध्यावस्था:

इस अवस्था में केन्द्रक सूत्र विभाजित अवस्था में रहता है एवं सेनटोमियर से जुडा हुआ रहता है| सेनटोमियर केन्द्रक सूत्रीय तन्तु होता है, जिसका केन्द्रक सूत्र में महत्वपूर्ण स्थान है|

पश्चावस्था:

इस अवस्था में केन्द्रक सूत्र के द्विभाग एक दूसरे से अलग होने लगते है, एवं बाद में ये अभिमुख केन्द्रक तक जाने लगते है|

अंत्यावस्था:

इस अवस्था में विभाजित हुए केन्द्रक सूत्रों के चारों तरफ केंद्र का आवरण पैदा होने लगता है| जिससे एक केन्द्रक से दो केन्द्रक बनते है एवं कोशिका का विभाजन सम्भव हो पाता है| यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है एवं प्राणियों के घाव आदि भरना या नए अंग का निर्माण आदि इसी चरण के बीच सम्भव हो पता है|

अर्धसूत्री विभाजन

अर्धसूत्री विभाजन जीवो के लेंगिक जनन के लिए अनिवार्य कड़ी है, इसके द्वारा युग्मक कोशिकाओं का जन्म होता है, जिसे शुक्राणु कोशिका एवं अंड कोशिका कहा जाता है| अर्धसूत्री विभाजन २ चरणों में पूर्ण होता है:

अर्धसूत्री विभाजन १:

पूर्वावस्था:

इसके अंतर्गत गुणसूत्र प्रत्यक्ष दिखाई देने लगते है एवं घने हो जाते है| यह कई उप अवस्थाओं में पूर्ण होती है, जिनके नाम है: लेप्टोटिन, जाईगोटिन, पैकीटिन, डिप्लोटिन, और डायाकिनीसीस| पूर्वस्था में नाभिक झिल्ली मिट जाती है एवं ताराकेंद्र अपने ध्रुवो की तरफ जाने लगते है|

मध्यावस्था:

इस अवस्था में विभाजित गुणसूत्र अपनी पहले जैसी अवस्था में बने रहते है एवं सेंट्रोमियर भी विभक्त नहीं हुआ होता|

पश्चावस्था:

इस अवस्था में गुणसूत्र विभाजित होने लगते है एवं सेंट्रोमियर भी खंडित होने लगता है, एवं गुणसूत्र अपने ध्रुवो की और बहने लगते है किन्तु आधी मात्रा में|

अन्तराल अवस्था:

यहाँ सन्तति कोशिका निर्माण होता है|

अर्धसूत्री विभाजन २

इस अवस्था में झिल्ली पूरी तरह से खत्म हो जाती है| इसमें कोशिका का विभाजन २ बार होता है एवं इसमें मध्यावस्था १ व् मध्यावस्था द्वितीय एवं अन्तरालअवस्था १ एवं अन्तराल अवस्था द्वितीय के तहत विभाजन की प्रक्रिया पूर्ण होती है|

मध्यावस्था १ में गुणसूत्र पूर्णत विभक्त हो जाते है, मादा में दोनों गुणसूत्र एक जैसे होते है| छोटी नलिकाए सेंट्रोमियर से संयुक्त होती है, एव अगले चरण में सेंट्रोमियर भी खंडित हो जाता है|

अंतिम चरण में जीवो की प्रजातियों के अनुसार साईटोकाईनेसिस द्वारा सन्तति कोशिकाओं के निर्माण का कार्य पूरा होता है जो चार अगुणित होती है|

द्विखण्डन

जब कोशिका खंडित होकर दो अन्य कोशिकाओं का निर्माण करती है तो इस प्रक्रिया को द्विखंडन कहा जाता है| इसमें डीएनए का एक अणु प्रतिगुणित होकर कोशिका झिल्ली के विभिन्न भागो से जुड़ जाता है| बाद में कोशिका विभाजन के समय मूल गुणसूत्र एवं प्रतिगुणित विभक्त हो जाते है| कुछ जीवो के कोशिकांगो का भी द्विखण्डन होता है|