सोलर पैनल कैसे काम करता है? Solar Panel in Hindi

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सोलर पैनल का नाम तो सब ने सुना ही होगा, जिसे सोलर सिस्टम भी कहा जाता है। आज के समय में विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आने के लिए ऊर्जा के पर्याप्त स्त्रोत उपलब्ध होने अति आवश्यक हैं। ऊर्जा स्त्रोत की श्रृंखला में ही एक बेहतर स्त्रोत सोलर पैनल भी है।

यह ऊर्जा का सबसे उपयुक्त स्त्रोत माना जाता है क्योंकि प्रदूषण मुक्त ऊर्जा पैदा करता है तथा प्रदूषण नियंत्रण में सहायक सिद्ध होता है। इसमें किसी प्रकार के ईंधन या पेट्रोल या डीज़ल की आवश्यकता नही रहती है और न बिजली का उपयोग होता है, क्योंकि यह सूर्य की रोशनी से काम करता है।

आसान भाषा में कहे तो यह धूप के जरिये ऊर्जा प्राप्त करके हमे ऊष्मा (विद्युत) उपलब्ध करवाता है।

आइये अब जानते हैं कि सोलर पैनल कैसे कार्य करता है? कैसे सूर्य की रोशनी से हमें ऊर्जा प्राप्त होती है?

सर्वप्रथम जानते हैं कि सोलर पैनल की बनावट में ऐसा क्या होता है, जिससे ऊर्जा बनती है। ततपश्चात इनके कार्य करने की प्रक्रिया पर भी आपको जानकारी उपलब्ध करवायेंगे।

सोलर पैनल की बनावट व कार्यविधि-

सूर्य से निकलने वाली रोशनी में जो ऊर्जा के कण पाये जाते हैं, उन कणों को “फोटॉन” कहा जाता है। फोटॉन को ऊष्मा या विद्युत के रूप में प्राप्त करने को ही “सौर ऊर्जा” कहते हैं। सूर्य से प्रत्यक्ष रूप में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ही “सोलर पैनल” का इस्तेमाल किया जाता है।

सौर पैनल में परस्पर सम्बद्ध सौर सेल लगे होते हैं। सौर सेल को “सौर बैटरी” भी कहते हैं।

इसके अतिरिक्त इन्हें “फोटोवोल्टिक सेल” भी कहा जाता है, यह शब्द ग्रीक भाषा से सम्बंधित है। ये बहुतायत में एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। ये सौर सेल “सिलिकॉन” की परतों से बने हुए होते हैं। सिलिकॉन अर्द्धचालक प्रकृति की धातु होती है। इनकी बनावट में सेल की परतों को इस प्रकार से रखा जाता है कि ऊपर वाली परत में ज्यादा मात्रा में इलेक्ट्रॉन पाये जाते हैं। सेल में एक तरफ धनात्मक व दूसरी तरफ ऋणात्मक आवेश पाया जाता है।

जब सूर्य की रोशनी इन सेल पर पड़ती है तो सेल द्वारा फोटॉन की ऊर्जा अवशोषित की जाती है और ऊपरी परत में पाये जाने वाले इलेक्ट्रॉन सक्रिय हो जाते हैं। तब इनमें बनने वाली ऊर्जा का प्रवाह होना आरम्भ होता है। धीरे-धीरे ये ऊर्जा बहती हुई सारे पैनल में फैल जाती है। इस प्रकार से सोलर पैनल ऊर्जा का निर्माण करते हैं। सोलर पैनल में आवश्यकता से अधिक ऊर्जा का निर्माण करके अत्यधिक गर्म होने पर यह खतरनाक भी हो सकता है। अतः इनमे ऊर्जा के नियंत्रण के लिए तथा इसमें सुरक्षा बनाये रखने के लिए सेल में डायोड का भी प्रयोग किया जाता है।

सोलर पैनल दो तरह के होते हैं-

# मोनोक्रिस्टेलिन सोलर पैनल- ये उच्च गुणवत्ता वाले सोलर पैनल होते हैं। इनके निर्माण में एकल सिलिकॉन क्रिस्टल का प्रयोग किया जाता है। ये सूर्य की हल्की रोशनी से भी ऊर्जा प्राप्त कर के हमे विद्युत प्रदान करते हैं। इनमे कम समय में भी अधिक विद्युत या ऊष्मा उत्पादन करने की विशेषता पाई जाती है। इसी कारण ये महंगे भी होते है। ऊँचे स्तर पर सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाले क्षेत्र में इनका उपयोग उचित रहता है।

# पोलीक्रिस्टेलिन सोलर पैनल- ये अपेक्षाकृत कम महंगे होते हैं। इनके निर्माण में सिलिकॉन के एकल क्रिस्टल का प्रयोग न करके अलग-अलग क्रिस्टल का प्रयोग किया जाता है। साधारण प्रयोग के लिए ये सोलर पैनल उपयोगी सिद्ध होते हैं।

इसके अतिरिक्त आवश्यकता के आधार पर सोलर पैनल के भिन्न-भिन्न आकार होते हैं। बड़े उद्योगों या कार्यों में विद्युत के अधिक उपयोग के लिए बड़े सोलर पैनल इस्तेमाल किये जाते हैं।

सोलर पैनल का महत्व-

सोलर पैनल का सबसे बड़ा फायदा और विशेषता यह है कि ये प्रदूषण फैलाये बिना हमे ऊर्जा या ऊष्मा उपलब्ध करवाते हैं। इनमे विद्युत निर्माण के दौरान न कोई विषैली गैस विसर्जित होती है और न ये वायु को प्रदूषित करती है। इनमें ऊर्जा निर्माण के दौरान कोई तीव्र ध्वनि उत्पन्न नही होती, जो कि ध्वनि प्रदूषण मुक्ति का उदाहरण है। सोलर पैनल कोई विकिरण प्रभाव भी नही डालते हैं। सोलर पैनल के अतिरिक्त ऊर्जा के जितने भी स्त्रोत हैं वे किसी न किसी रूप में प्रदूषण से युक्त होते हैं।

आजकल कृषि क्षेत्र में खेतों में बहुतायत से सोलर पैनल का इस्तेमाल होने लगा है, जो कि अत्यन्त आसान तरीका है। बिना किसी बिजली के कनेक्शन के प्राकृतिक रूप से बिजली उपलब्ध हो जाती है, जो खेतों में कृषि उपकरणों को चलाने में सहायता करती है। 

घरों में भी छतों पर सोलर पैनल लगाये जाने लगे हैं। सर्दियों के मौसम में गर्म पानी करना व विद्युत के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग करके खर्चे में भी कमी की जा सकती है तथा वातावरण को भी प्रदूषण मुक्त रखने में सहयोग किया जा सकता है।

इसका प्रयोग हम पानी गर्म करने या विद्युत के रूप में कर सकते हैं।

इसके अलावा आर्थिक रूप से भी इनका मूल्य उचित होने पर फायदेमंद रहते हैं तथा इनकी संभाल व देखरेख में कोई विशेष परिश्रम करने की भी आवश्यकता नही होती है|