रासायनिक संयोजन के नियम

प्रकृति में पाये जाने वाले अनगिनत द्रव्य व उनके तत्व आपस में संयोग कर के रासायनिक क्रिया द्वारा नए तत्वों व द्रव्यों तथा यौगिकों का निर्माण करते हैं।
विश्व में बहुत से प्रख्यात वैज्ञानिकों व रसायन विशेषज्ञों द्वारा ऐसे रासायनिक संयोजन के सम्बन्ध में कई नियम प्रतिपादित किये गए।

मुख्यतः छः नियम हैं-
द्रव्यमान संरक्षण नियम
स्थिर अनुपात नियम
गुणित अनुपात का नियम
व्युत्क्रम अनुपात का नियम
गैसीय आयतन का नियम
एवोगाड्रो का नियम

द्रव्यमान संरक्षण नियम

इस नियम का प्रतिपादन एनटॉयन लॉवाइजे ने सन् 1774 में किया था। यह नियम दर्शाता है कि किसी द्रव्य को व इसमें पाये जाने वाले द्रव्यमान को न तो निर्मित किया जा सकता हैं और न ही विनष्ट किया जा सकता हैं।

इसी प्रकार द्रव्यों में रासायनिक अभिक्रियाओं व रासायनिक समीकरणों के दौरान भी किसी भी विधि से उसके तत्वों के द्रव्यमान में न तो विकास किया जा सकता है और न ही विनाश किया जा सकता है। इसे ही द्रव्यमान संरक्षण कहते हैं।

जब एक से अधिक द्रव्यों के मध्य रासायनिक क्रिया से जिस द्रव्यमान की उपस्थिति में संयोजन होता है; क्रिया सम्पन्न होने के बाद भी बनने वाले नए द्रव्य में वही द्रव्यमान संरक्षित रहेगा।

किसी भी रासायनिक क्रिया द्वारा द्रव्य के रूप में परिवर्तन किया जाना संभव है, परन्तु द्रव्य का अस्तित्व नही मिटाया जा सकता, विनाश नही किया जा सकता। इसीलिए इसे “द्रव्य अविनाशिता का नियम” भी कहा जाता है।

स्थिर अनुपात नियम

फ़्रांस के रसायन विशेषज्ञ जोसफ़ प्रौउस्ट द्वारा सन् 1799 में यह नियम बनाया गया। इसके अनुसार किसी भी द्रव्य में पाये जानेे वाले तत्वों व उसमें स्थित द्रव्यमान का अनुपात सदैव स्थायित्व लिए हुए होता है। जब एक से अधिक द्रव्य संयोजित होकर कोई नया द्रव्य बनाते है तो उसमे पाये जाने वाले तत्वों का द्रव्यमान निश्चित व स्थिर अनुपात में रहता है। यह अनुपात परिवर्तनीय नही होता है। इसीलिए इसे स्थिर अनुपात का नियम कहा जाता है।

यौगिक में पाये जाने वाले परमाणु के भार की अवस्था का अनुपात स्थिर रहता है। इसमें निर्माण की क्रियाविधि या स्त्रोत का प्रभाव नही पड़ता अर्थात् यौगिक को किसी भी विधि से निर्मित किया जा सकता है या किसी भी स्त्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है।
इसे “निश्चित संघटन के नियम” के नाम से भी जाना जाता है।

गुणित अनुपात का नियम

यह नियम  जॉन डॉल्टन द्वारा सन् 1804 में प्रतिपादित किया  गया था। नियमानुसार जब दो तत्व आपस में संयोजित होकर रासायनिक क्रिया द्वारा एक से अधिक यौगिकों का निर्माण करते हैं तो उनमे से एक तत्व की मात्रा निश्चित रहती है तथा दूसरे तत्व की मात्रा गुणात्मक रूप में प्रदर्शित होती है अर्थात् एक तत्व की निश्चित मात्रा के साथ संयोजित दूसरे तत्व की मात्रा गुणा के रूप में होगी। इसे ही गुणित अनुपात का नियम कहा जाता है।
किसी यौगिक में पाये जाने वाले दो तत्वों में से एक तत्व की मात्रा स्थिर व निश्चित होगी व इसके साथ जुड़े दूसरे तत्व की मात्रा गुणा के रूप में अर्थात् दोगुणा या तीन गुणा या चार गुणा आदि के गुणित क्रम में हो सकती है।

व्युत्क्रम अनुपात का नियम

इसे तुल्य अनुपात का नियम भी कहते हैं। यह नियम वैज्ञानिक रिचर द्वारा सन् 1792 में बनाया गया।

जब तीन तत्वों के मध्य रासायनिक क्रिया होती है तथा (उदाहरण के लिए A,B,C को तत्वों का नाम दिया गया है) उसमे से एक तत्व (A) की मात्रा निश्चित रहती है तथा बाकी दो तत्वों (B व C) की मात्रा अनिश्चित होती है तो उस निश्चित तत्व की मात्रा के साथ उन दोनों तत्व की कुछ मात्रा जुड़ जाती है। जब कभी दोनों तत्व (B व C) आपस में क्रिया करते है तो उनकी मात्रा का वही अनुपात होगा जो पहले निश्चित तत्व (A) के साथ था।

दूसरे शब्दों में, जब एक निश्चित मात्रा वाला कोई तत्व दो अलग-अलग मात्रा वाले तत्वों से मिलकर क्रिया करता है तो दोनों तत्वों का एक अनुपात उस निश्चित मात्रा वाले तत्व के साथ भी संयोजित हो जाता है। जब वे दोनों अलग-अलग मात्रा वाले तत्व आपस में क्रिया करेंगे तो उनके मध्य वही पुराना अनुपात कायम रहेगा।

गैसीय आयतन नियम

वैज्ञानिक गे लुस्साक द्वारा सन् 1808 में यह नियम प्रतिपादित किया गया। इसके अनुसार जब गैसें एक समान दाब व ताप के अंतर्गत परस्पर क्रिया करती है, उनके मध्य आयतन के अनुपात की सरल अवस्था रहेगी। इन अभिक्रियाओं से बनने वाली नई गैस या गैसों के तत्वों के आयतन का अनुपात भी उन क्रियाशील गैसों के अनुसार सरल स्थिति में रहता है।
दूसरे शब्दों में, जब किसी द्रव्य पर दाब और ताप में परिवर्तन आए या किया जाए तो द्रव्य के आयतन में भी परिवर्तन आता है। अतः नियमानुसार एक से अधिक गैसों के आपस में मिलकर रासायनिक क्रिया करने पर या नयी गैस के निर्मित होने पर यदि उनमें दाब व ताप स्थिर व समान रहता है तो उनका आयतन भी सरल अनुपात में बना रहेगा।

एवोगाड्रो का नियम

जब समान आयतन वाली दो या अधिक भिन्न-भिन्न गैसों को एक निश्चित ताप व निश्चित दाब पर रखा जाता है तो उनमे पाये जाने वाले अणुओं की संख्या भी समान होगी।
इस नियम को सरलता से समझा जा सकता है। केवल ध्यान देने योग्य बिन्दु यही है कि अलग-अलग गैसों को एक स्थिर तापमान व दाब दिया जाता है तो उनके अणु भी समान मात्रा में रहते हैं, परन्तु यह आवश्यक है कि उन गैसों का आयतन समान हो।
इसे दूसरे तरीके से ऐसे भी कहा जा सकता है कि समान अणुओं वाली भिन्न-भिन्न गैसों का आयतन भी समान होता है