पर्यावरण, प्रदूषण एवं इसके प्रभाव

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जल, वायु, वनस्पति, जीव-जन्तु, मिट्टी आदि मनुष्य के चारों ओर परिलक्षित है, इन्हीं से हम घिरे हुए हैं, यही पर्यावरण है। हमारे आस-पास की परिस्थितियां, प्रभाव व वस्तुस्थितियां ही पर्यावरण है। हमारा वातावरण ही पर्यावरण है। वातावरण में पाये जाने वाली सभी घटकों को पर्यावरण में सम्मिलित किया जाता है।

पर्यावरण एक व्यापक अभिव्यक्ति है। इसमें वे सभी कारक सम्मिलित किये गए हैं, जिनके बीच हम रह रहें हैं और जिनका मनुष्य जीवन के प्राकृतिक परिवेश पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव अवश्य पड़ता है।

यह भी माना जा सकता है कि यदि पर्यावरण स्वच्छ व शुद्ध है, तो सबका जीवन भी स्वस्थ व सुखी बना रहता है और इसी के विपरीत यदि पर्यावरण में अशुद्धता व संदूषण है, तो जीवन निर्वाह भी अस्वस्थ व कष्टकर बन सकता है।

पर्यावरण का दूषित होना ही पर्यावरण प्रदूषण है। पर्यावरण प्रदूषण के कुछ ऐसे कारण है जो प्राकृतिक है, जैसे सूखा, बाढ़, भूकम्प, लावा, सुनामी आदि से जब वनस्पति नष्ट होती है, जल स्त्रोत नष्ट होते है, जीव-जन्तुओं की मृत्यु होती है तथा बहुत सी बाधाएँ उत्पन्न होती है, जिससे मानव हानि होती है। इन सबका सारा दुष्प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है।

पर्यावरण प्रदूषण के कुछ कारण ऐसे भी हैं जो मानव निर्मित हैं, जैसे- जनसंख्या वृद्धि, गरीबी, शहरीकरण,
औद्योगिकिकरण, जन चेतना का अभाव, पर्यावरण शिक्षा का अभाव, ओज़ोन परत की क्षीणता, वन विनाश आदि।

जनसंख्या बढ़ने व गाँव के लोगो के शहरों में बस जाने से गाँव खत्म हो रहे है तथा शहरों का विकास हो रहा है। शहरों का विकास करने के लिए जंगलों की कटाई की जा रही है, जिससे वायु में अशुद्धता आ रही है। लोगो की बढ़ोतरी के साथ जरूरतें बढ़ने से औद्योगिक व्यवसाय, कारखाने भी बढ़ रहे है, जो जल, वायु व मृदा प्रदूषण के कारण पैदा कर रहे हैं। तो इस तरह से एक के साथ एक कड़ी जुड़ते हुए बहुत बड़ी श्रृंखला बनी हुई है, जिससे प्रदूषण फैलता जा रहा है। इस बारे में जितनी व्याख्या की जाए, उतनी कम होगी।

जिस प्रकार पर्यावरण के भिन्न-भिन्न अँग है, जैसे जल, वायु, मिटटी आदि; उसी प्रकार इनके आधार पर पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार भी भिन्न-भिन्न हैं-

वायु प्रदूषण

प्रकृति की स्वच्छ हवा के की गुणवत्ता में जब कमी आ जाती है तथा वायु अस्वच्छ व अशुद्ध हो जाती है तथा वायु में प्रदूषण के कण फैल जाते हैं, तो यह वायु प्रदूषण कहलाता है। ऐसी हवा में साँस लेने से यह फेफड़ों तक पहुँच कर शरीर को भी नुकसान पहुँचाती है।
वायु के दूषित होने के ये कारण हैं- वाहनों से निकलने वाली गैस, कारखानों व मिल से निकलने वाली विषैली गैस, पेड़ों के कटाव से अस्वच्छ होती वायु आदि।

जल प्रदूषण

किसी द्रव या गैस या ठोस पदार्थ से होने वाला जल का ऐसा संदूषण जिससे जल के भौतिक व जैविक गुणों में कमी आती है तथा जीवों व मनुष्यों के लिए ऐसा जल क्षतिकारक हो जाता है तथा सेवन के लायक नहीं रहता है, तो यह जल प्रदूषण कहलाता है।
नदी-नहरों में कचरा फेंकना, जन्तुओं के मृत शरीर को जल में प्रवाहित करना, कारखानों व खेतों से निकलने वाले रसायनों का नहरों-नदियों में मिलना आदि जल प्रदूषण के कारण हैं।

ध्वनि प्रदूषण

जिस आवाज या शोर या ध्वनि से मनुष्य में बेचैनी, अशान्ति व चिड़चिड़ापन पैदा होता है और जो सुनने में अप्रिय लगे, ऐसी स्थिति ही ध्वनि प्रदूषण कहलाती है।
ध्वनि प्रदूषण के कृत्रिम मानव जनित स्त्रोत हैं- उद्योग धंधे, मिल, वाहन, मनोरंजन के साधन जैसे स्पीकर, टी.वी. व डी.जे.और पूजा स्थल के उपकरण।
ध्वनि प्रदूषण के प्राकृतिक स्त्रोत हैं- बादलों की गर्जना, तूफ़ान, उच्च वेगयुक्त वायु, तीव्र वर्षा, ओला वृष्टि।

भूमि प्रदूषण

इसे मृदा प्रदूषण भी कहते हैं। जब मिट्टी में पाये जाने वाले प्राकृतिक गुण नष्ट हो जाते हैं तथा भूमि अनुपजाऊ होने लगती है, तो इसे भूमि प्रदूषण कहते हैं।
फसलों में प्रयोग किये जाने वाले रासायनिक खादों व कीटनाशकों, पॉलीथिन व ठोस अपशिष्ट पदार्थों के मिट्टी में मिल जाने से यह दूषित होती है। मृदा के संदूषण से फसलों की उपज पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

विकिरण (रेडियोएक्टिव) प्रदूषण

दुनिया में कहीं न कहीं अणु बम या परमाणु बम आदि के विस्फोट होते हैं या विस्फोट के प्रयोग होते हैं, जिससे इनसे निकलने वाली अत्यधिक हानिकारक रेडियोएक्टिव किरणें हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करती है तथा ये रेडियोएक्टिव किरणें मनुष्यों व जीवों के लिए अत्यन्त हानिकारक होती हैं। रेडियोएक्टिव किरणों का प्रभाव कई दशकों तक बना रहता है।

ओज़ोन प्रदूषण

ओज़ोन हमारी रक्षक परत है। सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी का बचाव करने वाली ओज़ोन परत का क्षीण होना ही ओज़ोन प्रदूषण कहलाता है। ये किरणें यदि सीधी पृथ्वी पर पड़े तो नुकसानदायी होती हैं।
रेफ़्रिजरेटर व एयरकंडीशनर से निकलने वाली  गैसों का दुष्प्रभाव सीधे ओज़ोन परत पर पड़ता है। इससे ओज़ोन परत धीरे-धीरे नष्ट होती जा रही हैं।

पर्यावरण प्रदूषण के कुछ प्राकृतिक व कृत्रिम कारणों जैसे ज्वालामुखी फटना, लावा निकलना, कारखानों व वाहनों से निकलने वाले रसायन वायुमण्डल में मिलकर सल्फ़र व नाइट्रोजन के यौगिक का निर्माण करते हैं।
सल्फ़र डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन वातावरण में मिलकर जल से क्रिया करके सल्फ्यूरिक व नाइट्रिक अम्ल का निर्माण करते हैं, फिर ये अम्ल पृथ्वी पर वर्षा के जरिये नीचे आते हैं, इसे अम्लीय वर्षा कहते हैं।
अम्लीय वर्षा से मृदा की गुणवत्ता में कमी आती है, पेड़-पौधे पीले पड़ने लगते हैं व जड़े सूखने लगती हैं, मनुष्यों में श्वसन व त्वचा सम्बन्धी रोग पैदा होते हैं।

प्रदूषण किसी भी प्रकार का हो, वह सभी पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शारीरिक या मानसिक प्रभाव डालता ही है। मनुष्य मानसिक या शारीरिक व्याधि से ग्रस्त हो जाता है। मानव, जीवों, पेड़-पौधों अर्थात् सजीवों पर पर्यावरण का सीधा प्रभाव पड़ता है।
यदि प्रदूषण पर नियंत्रण न हो तो न केवल पर्यावरण प्रदूषित होगा, अपितु जीवन भी दूषित होगा तथा सभी को इसके दुष्प्रभावों का सामना करना होगा, जिससे संकट की स्थिति पैदा होगी तथा दुर्दशा हो जाएगी।

पर्यावरण की सुरक्षा बनाये रखने के लिए सरकार द्वारा एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया, जिसके अन्तर्गत सन् 1986 में “पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986” पारित किया गया। यह अधिनियम 12 नवम्बर 1986 से प्रवर्तन में आया। इसका विस्तार जम्मू कश्मीर सहित पूरे भारत पर है।
इस अधिनियम के मुख्य उद्देश्य हैं- पर्यावरण प्रदूषण का निवारण करना, प्रदूषण का उपशमन करना, मनुष्यों व जीवों को प्रदूषण के दुष्प्रभावों से बचाना आदि।

पर्यावरण में होने वाले बदलावों व गतिविधियों की जानकारी पाने के लिए 1978-1979 में “पर्यावरण प्रभाव आकलन योजना” का आरम्भ हुआ।
स्वस्थ पर्यावरण हेतु बनाये गए सभी मानक व नियम का पालन करना, प्राकृतिक आपदाओं का अनुमान लगाना, भावी आपदाओं से होने वाली जोख़िमों को कम करना, प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग करना, जैव-विविधता बनाये रखना आदि लाभ इस योजना के अन्तर्गत सम्मिलित हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 में पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी प्रावधान दिए हैं। इसमें राज्य को पर्यावरण सुरक्षा के कर्तव्य सौंपे गए है  जिसमें यह लिखा गया है कि “राज्य; देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्द्धन का और वन व वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
इसी के साथ संविधान के अनुच्छेद 51 में भारतीय नागरिकों का दायित्व व मूल कर्तव्य है कि “वे प्राकृतिक पर्यावरण जिसमें वन, झील, नदी व वन्य जीव हैं; की रक्षा करें और इनका संवर्द्धन करें तथा प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव रखें।”

प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वे पर्यावरण की रक्षा करें तथा स्वच्छता बनाये रखे, ताकि वह स्वयं भी एक शुद्ध वातावरण में स्वस्थ जीवन यापन कर सके। यदि स्वयं के जीवनशैली में सकारात्मकता चाहते हैं तो ऐसे हर सम्भव प्रयास किये जाए जिससे पर्यावरण में नकारात्मकता न आये।